वो बचपन ......... प्यारा बचपन -2
माँ के जगने से पहले आ कर सो जाने का क्रम यु ही चलता रहता ! अमरुद के मौसम मे माँ खासकर पके अमरुद का जैम जरूर बनाती थी और उसे काँच के मर्तबान में रखकर अलमारी के सबसे ऊपर रख देती ताकि हम " छोटे - छोटे बच्चों " का हाथ वहां तक न पहुच पाए ! जैम उधर बना और हम लोगो के जीभ में लपलपाहट शुरू हो गई कि कैसे अब इसका भोग लगाया जाये ! जैम जब बनकर तैयार होता है तो गाढ़ा लाल रंग का घोल होता है जो जमकर थोरी देर बाद खाने योग्य हो पाता है ! अब जब दोपहर मे माँ हम लोगो को खाना खिलाकर साथ मे सबको लेकर सो जाती तो हमलोग भी सोने का नाटक कर परे रहते .. क्यूंकि अगर ना सोते तो माँ एक मोटा सा डंडा भी साथ मे रखती थी ! जिससे पिटाई का भी मस्त अंदेशा होता था ... अरे सोया .. आंख खुला किउ है ... बंद करो .. नहीं सोयेगा उठाये डंडा .. बहन कहती ; ... देखो ना माँ .. भैया ठेल रहा है .. सोने नहीं देता है ! " नहीं नहीं माँ यही धक्का दे रही है ! " .... तुमलोग सोते हो या डंडा लगाऊ ! " ..... हमलोग माँ के भय से झुठमुठ आँख बंद कर लेते .. थोरी देर बाद माँ तो सो जाती और मै जागा हुआ ये देखता की बहनों मे कौन जगी है और कौन सो गई पाठको को एक और बात बताता चलु की भाई में मै अकेला और बहन मेरी सात है तो दो - तीन तो जगी मिल जाती फिर चुपचाप खुसुर फुसुर करके बिछावन से सरक कर धीरे से मै उतर जाता और देखता की माँ उठी की नहीं ... क्यूंकि माँ अगर मेरे उठने से जागती तो एक बहाना था लघुशंका जाना है ! माँ के नहीं उठने पर बहन लोग भी जो जगी होती उठ जाती और फिर हमलोगों का " मिशन जैम " शुरू हो जाता ! आज याद करता हु तो हँसी भी आती है और लगता है कि बच्चे कितनी शरारत अपने माँ के साथ करते है और माँ कितने सव्र से इन शरारतों को निभा देती है ! खैर , अब जैम के इस मिशन को पूरा करने के लिए अलमीरा के सबसे ऊपर खाने पर पहूचना भी जरूरी था और साइज़ के हिसाब से ये मुश्किल था ! अचानक दिमाग में एक आईडिया आया मैने अपने कंधे पर अपने बाद बाली बहन को बिठाया उसके कंधे पर उसके बाद बाली बहन और उसके कंधे पर उसकी बाद बाली बहन को बिठाया और फिर सबको ले कर मै खरा हो गया ! अब ऊपर रखा हुआ मर्तबान सबसे ऊपर बाली बहन के हाथ मे था अब वो बहन नीचे बाली बहन को पास करते हुए क्रमशः मेरे तक पहुच जाता और फिर धीरे -2 सारी बहनों को उतारकर जैम का मर्तबान लेकर किचन में हम सब पहुच कर सोचने लगे कि कैसे इसमे से खाया जाए ताकि माँ को भी पता न चले ! अब वहा पर चम्मच का सहारा लेकर एक - एक चम्मच ऐसे मर्तबान के गले से नीचे तक बारीकी से कटाई करते गए कि जम कर जैम नीचे बैठ गया हो ! जैम का भोग लगाकर हमलोगों ने उतारने बाले तरीके से उसी जगह पर बापस रख दिया और आराम से माँ के बगल मे आकर वैसे ही सो गए !
अब बारी थी पकरे जाने की शाम मे जब माँ उठी तो फिर अपने नियमानुसार घर मे आने वाली आया से काम कराने के बाद रात का खाना बनाने मे लग गई ! उस जमाने मे गैस का चूल्हा नहीं होता था या तो कोयेले या लकरी या कुन्नी ( लकरी का बुरादा ) का चूल्हा होता था तो हमारे यहाँ कुन्नी बाला ही चूल्हा था ! खाना बनाने की सारी तैयारी करने के बाद रोटी बनाने को माँ जा ही रही थी कि अचानक उसे जैम की याद आई की देखे कि जमा की नहीं ! मर्तबान नीचे कर खोल कर देखते उसे लगा कि इसमे कुछ गरबर है ! अब हमलोगों का माँ की दरबार में पेशी का वक्त था ... सभी सामने खरे " .. बोलो जैम कौन खाया है ? " मैने सबसे पहले जवाब दिया ; हमलोग तो तुम्हारे ही साथ सो गए थे अम्मा ... तुम्हारे उठने के बाद ही उठे है ... अच्छा .. तो भुत आकर खा गया ... बताओ नहीं तो एक एक का टांग तोर दूंगी ....! हमलोग एक दुसरे भाई बहन का मुह देख ही रहे थे की अम्मा पतली बाली छरी लेकर जो सबसे ज्यादा डरने बाली बहन थी उसकी पिटाई शुरू कर चुकि थी .... ना अम्मा न ... हमको न मारो,,,,,, भैया ने ये सब किया है " वस फिर क्या उसके बाद तो अम्मा की छरी और मेरा शरीर,,,,, अब माफ़ कर दो अम्मा अब ऐसी गलती न होगी ! लेकिन अम्मा का गुस्सा कहाँ शांत होने बाला ! मै नीचे बिछे कालीन पे लोटता गया और छरी बरसती रही ! पापा भी उसी समय घर मे आए तो जाकर उन्होने बचाया !
क्या बचपन मे शरारतों का सिलसिला यही ख़त्म हो गया ! नहीं ! अगली बार कोलकाता मे अपने बीते बचपन की कहानी बताऊंगा ! तबतक के लिए विदा ! धन्यवाद
अब बारी थी पकरे जाने की शाम मे जब माँ उठी तो फिर अपने नियमानुसार घर मे आने वाली आया से काम कराने के बाद रात का खाना बनाने मे लग गई ! उस जमाने मे गैस का चूल्हा नहीं होता था या तो कोयेले या लकरी या कुन्नी ( लकरी का बुरादा ) का चूल्हा होता था तो हमारे यहाँ कुन्नी बाला ही चूल्हा था ! खाना बनाने की सारी तैयारी करने के बाद रोटी बनाने को माँ जा ही रही थी कि अचानक उसे जैम की याद आई की देखे कि जमा की नहीं ! मर्तबान नीचे कर खोल कर देखते उसे लगा कि इसमे कुछ गरबर है ! अब हमलोगों का माँ की दरबार में पेशी का वक्त था ... सभी सामने खरे " .. बोलो जैम कौन खाया है ? " मैने सबसे पहले जवाब दिया ; हमलोग तो तुम्हारे ही साथ सो गए थे अम्मा ... तुम्हारे उठने के बाद ही उठे है ... अच्छा .. तो भुत आकर खा गया ... बताओ नहीं तो एक एक का टांग तोर दूंगी ....! हमलोग एक दुसरे भाई बहन का मुह देख ही रहे थे की अम्मा पतली बाली छरी लेकर जो सबसे ज्यादा डरने बाली बहन थी उसकी पिटाई शुरू कर चुकि थी .... ना अम्मा न ... हमको न मारो,,,,,, भैया ने ये सब किया है " वस फिर क्या उसके बाद तो अम्मा की छरी और मेरा शरीर,,,,, अब माफ़ कर दो अम्मा अब ऐसी गलती न होगी ! लेकिन अम्मा का गुस्सा कहाँ शांत होने बाला ! मै नीचे बिछे कालीन पे लोटता गया और छरी बरसती रही ! पापा भी उसी समय घर मे आए तो जाकर उन्होने बचाया !
क्या बचपन मे शरारतों का सिलसिला यही ख़त्म हो गया ! नहीं ! अगली बार कोलकाता मे अपने बीते बचपन की कहानी बताऊंगा ! तबतक के लिए विदा ! धन्यवाद
1 comment:
very nice :) jivant thi story :)
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