एक समर्पित समाज सेवी आदरणीय बालेश्वर प्रसाद वर्मा
बालेश्वर प्रसाद वर्मा का जन्म 1927 में हर प्रसाद वर्मा एवं सरयू देवी के संतान के रूप में बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ था ! वे अपने तीन भाइयो एवं दो बहनो में अपने माँ बाप के दूसरी संतान थे ! बालेश्वर बाबू का तेवर शुरू से ही क्रन्तिकारी था तभी तो वे ब्रिटिश फौज की नौकरी पकड़ कर बाद में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर ब्रिटिश फौज की लगी लगाई नौकरी छोड़ दी ! बाद के दिनों में उन्होंने अपना व्यापार शुरू किया ! जिसकी शुरुआत उन्होंने रेडियो से की ! उस समय रेडियो नया नया आया था उन्होंने मुजफ्फरपुर को रेडियो से परिचय करवाया ! वही उनका विवाह ललिता देवी से हुआ ! मुजफ्फरपुर में रेडियो के व्यापार को छोड़ते हुए वे किशनगंज १९५६ में सपरिवार आए जहा पर संतोष सोप फैक्ट्री लगाई ! साबुन की फैक्ट्री चली नहीं ! वही उनके प्रथम पुत्र राजेंद्र प्रसाद वर्मा का जन्म हुआ ! पुनः वे पूर्णिया आये और यहाँ एलेक्ट्रिकफिकेशन का नया काम शुरू किया ! काम ठीक ठाक चल रहा था लेकिन पूर्णिया के पानी की स्थिति बेहद ख़राब थी उस ज़माने में जो पानी ट्यूबवेल से निकलता था पानी रात भर रखने के बाद पानी के ऊपर छाली जम जाया करता था उस समय फ़िल्टर की व्यवस्था नहीं थी ! माँ की जिद की वजह से उन्हे पूर्णियाँ छोड़ना पडा ! बाद के दिनों में दस साल मुज़फ़्फ़रपुर कोलकाता पटना बीरपुर मे व्यापार करने की कोशिश करते हुए वापस 1970 में वे फिर सपरिवार पूर्णियाँ आए ! यहाँ उन्होंने एक मोटर वर्क शॉप खोला ! काफी मेहनत के बाद उस काम से रोजी रोटी चलने लगी !लम्बी उठापटक ने बच्चो की पढाई लिखाई पर भी काफी असर डाला ! कांग्रेस की सरकार थी अचानक 26 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा हो गई ! समाज के साथ सक्रिय रूप से जुड़े होने की वजह से वे भी इमरजेंसी के बिरोध में काम करने लगे ! पूर्णियाँ शहर में 1976 से साप्ताहिक अख़बार " कीचड़ से कमल " हिन्दी में प्रकाशित करना शुरू किया और पूर्णियाँ शहर के विकास और व्यवस्था, आम आदमी की चिकित्सा , भ्रष्ट तंत्र के पोल को खोलने की मुहीम को व्यक्तिगत और पत्रकारिता के माध्यम से जारी रक्खा !इसी के तहत वे जयप्रकाश आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई और आन्दोलन के समय वे जिला जन संघर्ष समिति के पूर्णियाँ के युवा समन्वयक रहे ! आपातकाल में वे पूर्णियाँ के सबसे पहले गिरफ्तार किए गए आंदोलनकारी थे ! उनके साथ ही श्री दिलीप कुमार दीपक , श्री राजीव भारतीय भी थे ! इन सब लोगो को पूर्णियाँ जेल में प्रसिद्ध कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु के साथ रक्खा गया बाद में कटिहार जेल फिर भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया जहां भागवत झा आज़ाद और अन्य कई आंदोलनकारी बंद थे ! आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी का गठन हुआ तो वे चुनावी सम्मेलनों के लिए अपनी अंबैस्डर कार पर वक्ताओं को लेकर जाते और अपनी भागीदारी जताते ! उंन्होने कभी कोई राजनितिक लाभ पद की आकंछा नहीं रक्खी ! जीवन भर उन्होंने समाज के विकास की लड़ाई लड़ी ! 07 जून 1998 को हृदयाघात के कारण उनका आकस्मिक निधन हो गया ! आज वे इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके नहीं होने के बाबजूद भी भीड़ का हिस्सा होकर भी समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा शायद उनके परिवार जिसमे एक पुत्र राजेंद्र प्रसाद वर्मा जो पूर्णिया में ही म्यूच्यूअल फण्ड निवेश वितरक के काम को करते हुए निवेश के छेत्र के में सफलता पूर्वक अपनी प्रतिस्ठा बनाए हुए है और सात पुत्रिया अपने अपने वैवाहिक जीवन में समर्पित परिवार के साथ प्रेरणा स्पद बन कर चल रही सदस्यों को मिलती है ! उस ज़माने के संघर्ष की पीड़ाओं को अपने अंदर संजो कर आज के ज़माने की तेज़ रफ़्तार जिंदगी में न्यायपूर्वक चलना शायद उसी पत्रकारिता की देन है जो लेने में कम और समाज को देने में ज्यादा विश्वास रखती थी !
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