Friday, December 21, 2012

हजरत निजामुद्दीन के दरगाह का एक चमत्कारिक अनुभव

हजरत  निजामुद्दीन  के  दरगाह  का  एक  चमत्कारिक  अनुभव 


  1.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      बात  ये अभी 20 अक्टूबर 2012 की है  मैने  आज से 20 साल पहले अपने से एक मन्नत मांगी थी माता  वैष्णों देवी के दरबार मे  जाने  की जिसके लिए लिए मै 20 अक्टूबर 12 को यहाँ से दिल्ली के लिए  परिवार  के साथ निकला   दिल्ली  पहुचने के बाद वहा  से जम्मू  तक का  आरक्षण  अभी  नहीं हुआ  था  इसलिए  मैने  सोचा की क्यू  ना  दिल्ली  मे  मेरा  नहीं  देखा  हुआ  हुमायु  का मकबरा  देख  लु ; मैने  तै  किया कल  सवेरे  हुमायू  के मकबरा  के लिए   प्रस्थान  किया जाय ! तैसुदा  तरीके  पर अमल  करता  हुआ  मै लगभग 11 बजे  मै हुमायु के मकबरे  पर पंहुचा !वहा  पर  घुमते  हुए  एक बात  जो  समझी  की यहाँ हजरत निज़ाम्मुद्दीन  का दरगाह है जो ऐसे  एक सच्चे पीर  है  जिनकी  बजह  से हुमायु  के मकबरे  की सुरक्षा  रह सकती है  इसीलिए मकबरा और मुगलों  की  कब्रगाह वहा  बनाई  गई ! मैने  भी  सोचा  की  चलो  हजरत निज्ज़मुद्दीन  के  भी यहाँ माथा  टेक  लिया  जाए !शुक्रवार  का  दिन  था  मै  बढ़ चला  दरगाह  की  ओर ! आगे  बढ़ते  हुए  अचानक  ख्याल  आया  की  मैने स्नान नहीं  किया  है ! मेरे  बढ़ते पांव  थम  गए  , पास  की  ही  एक  चाय  की  दुकान पर मै  बैठ  गया सोचते  हुए  मैंने  चाय  बाले  को  एक चाय  देने  कों  कहा ! चाय  पीते हुए  मैंने मन ही  मन सोचा की  अच्छा  किसी  और  दिन  आऊंगा !   अभी  तो  वैष्णो  देवी  के  दर्शन कर वापस  दिल्ली न ही  आना है !  यहाँ  से  वापस  हो कर  मै  अपने  टिकट  की  व्यबस्था  मे  लग  गया !कहते  है की  बिना  बुलावे  के  माँ  के दरबार  मे कोई  नहीं जा सकता  मेरा   बुलाबा  था  और   मुझे  आरक्षण  मिलता  गया  ! खैर , माँ  के  दरबार  पंहुचा  , दर्शन  हुए  बापस  निर्धारित  तरीके  से  फिर  वापस  दिल्ली  पहुच  गया ! अब  मैने  सोचा  कि  जैसे  मुझे  पूर्णिया  से  माता  रानी  के  दरबार  जाने  का  टिकट  मिलता  गया  वैसे  मुझे  बापसी  का  टिकट  भी  मिल  जायेगा  ! टिकट  की  खोज  मैने  4 नवंबर  से  अपने  लैपटॉप  पर  शुरु  की ! क्या  बताऊ  20 नवंबर  तक  प्रयास  करते -2 मै  थक  गया ... कोई  टिकट  नहीं ...किसी  भी  रास्ते  से  बिहार  तक  के  लिए  नहीं  मिला ! 500-600 वेटिंग  मे  सारी  टिकटे  थी ! पत्नी  ने  कहा  कि  जाइए  सरोजनी  नगर  और  वही  से  तत्काल  मे  टिकट  कटा लीजिए ! दिल्ली  मे  सर्दी  शुरु  हो  चुकी  थी , ठण्ड  मे  सवेरे  उठकर  जाना  बेहद कष्टकर  लग  रहा  था ! खैर ,21नवम्बर  की  रात  मै  सोया  सोंचा  कल  सवेरे  जाऊंगा  स्टेशन ! सोने  के बाद  सपने  मे  मै  क्या  देखता  हू  कि  मै  एक  मजार  मे  खरा  हु  और  सामने  गुलाब की  पंखारिया   बिछी  हुई  है  और  मेरे  बाई  हाथ  की  तरफ  कोई  खरा  है  और  कह  रहा  है  कि " तुम  बोले  थे  कि  आओगे  और  आए  नहीं "! मेरी नींद  खुल  गई  ! सवेरे  का  6 बज  रहा  था ! मैने  श्रीमती  जी  को  कहा  कि  देखो  मैने  ये  सपना  देखा  है  और  मै  भूल  गया  था  कि  मैने  हजरत  निज्ज़ामुद्दीन  के  दरगाह  पर  आने  का  बायेदा  किया  था ! श्रीमती  जी  ने  कहा  " तो  नहा  धो  कर  तैयार  हो  कर  जाए ! जल्दी -2 तैयार  हो  कर  मै  मेट्रो  और  पैदल  दरगाह  पंहुचा ! बाहर  मे  फुल  और  अगरबत्ती  बेचने  बाले  ने  मुझसे  फूल की  डाली  के  51 रूपए  से  501 रूपए कहे  तो   मैने  कहा  कि  भैया  मेरा  कोई  मन्नत  नहीं  है  बाबा  ने  मुझे  बुलाया  है  ! वो  भी  फिर  चुप  हो  गया ! 11 रूपए  की  डाली  लेकर  मै  अन्दर  गया  ! पहले  तो  सामने  एक  शायर  के  मजार पर  मैने  वो  डाली  चढ़ा  थी ! उसके  पीछे  ही  हजरत  का  दरगाह  है  ! वहा  के  लिए  उसी  आहाते  की  दूकान से  मैने  फिर  एक  डाली  खरीदी  और  हाथ  पैर  धो  कर  सर  को  ढकते  हुए  मै  दरगाह  मे  दर्शन  को  घुसा ! अन्दर  जा  कर  मै  अस्श्चर्य  मे  पर  गया !!!!!! अन्दर  वो वही  दरगाह  उसी  तरीके  से  गुलाब  की  पंखरियो  से  ढंका  हुआ  पीर  की  जगह  सामने  थी ! मत्था  टेकने  के  बाद  मै  बापस  बाहर  निकला ! थोरा  इधर -उधर घूमने  के  बाद  ह्रदय  मे  एक  अदभुत  शांति  का  एहसास  लेते  हुए  घर पंहुचा ! अगले  दिन  रात  को  मै  युही  फिर   टिकट  की  मैने  खोज  शुरु  की ! टिकट  तो  सब  ट्रेन  मे  500 से  600 वेटिंग  ही  था ! लेकिन  अचानक  मै  देखता  हु  कि  एक  पटना  तक  के  ट्रेन  मे  72 टिकट  स्लीपर  का  खाली  है !मुझे  बिश्वास  नहीं  हुआ ! मैने  साईट  बंद  कर  फिर  से  खोला ! अब 71 सीट  खाली  था ! फटाफट  मैने  टिकट  काटे ! फिर  मै  30 नवम्बर  को  पूर्णिया  बापस  पहूच  गया !  यह  बात  मै  इसलिए  शेयर  कर  रहा  हु कि  मैने  इस  पुरे  घटनाक्रम  मे  एक  बात  महसूस  वरी  सिद्दत  से  किया  है  की  इस  दुनिया  के  ऊपर  इक  और  भी दुनिया  चल  रही  है  जो  हमारे  सभी  अच्छे  बुरे  कामो  को  देख  रही  है ! बुराई  दुनिया  मे  बहुत  सारी  चलती  हुई  इन्सान  को  भटका  कर  अपने  आगोश  मे  लेने  को  तैयार  बैठी  है !इन्सान  अगर  उससे  बच  कर  निकल  चले  तो  उस  मालिक  जो  एक  है की  ताक़त  और  उसके  रहनुमाओं  का  साथ  इस  जीते  जिन्दगी  मे  महसूस  कर  सकता  है ! मेरी  बात  किसी  को  बुरी  लगे  तो  छमा  करेंगे !दिल  की  बात  थी , लिख  डाली !धन्यवाद !!!!!!