Thursday, June 28, 2007

पुन्जिबाद की जय

भारत मे बिकास के नए सत्र का एक दौर चल रहा है !तरह -तरह के परिवर्तन दिख रहे है ! राजनिति को ले तो कभी एक दल सत्ता पर जमे होते थे तो आज अनेक मिलकर जमे हुए है! कभी देश कर्ज के जाल मे फसा होता और हमारे देश के नेता कर्ज देने की गुहार अमरिका ,रुस,ब्रितेन,से लगा रहे होते थे ! उस जमाने मे हम लोग किताब मे देखते थे कि रा-पति की तन्खाह दस हजार रु. ! अब भारत की तस्बीर दुसरी है !अब रा-पति की तनख्बाह होगी एक लाख रु.! एक फ़िल्म मे काम करने के लिए जब एक अभिनेता तीन,चार,और दस करोर (माफ़ करे) ले तो इस का मतलब क्या है ! नीचे से उपर आता हु ! अगर आपकी हिन्दी फ़िल्मो मे रुचि हो तो याद होगे मोतीलाल, भारत भुशन,नादिरा,भगबान दादा, ये लोग अपने जमाने के शाह्ररुख थे लेकिन तन्गी मे दुनिया से गए !समय महगा हो गया ! आज के ये लोग देश के होने बाले बिकास को जानते है अपने को बचाने का उपाय है सब......! लेकिन इस दौर मे आम आदमी का क्या हो रहा है? जहा पहले एक आदमी भरे-पुरे परिवार को जिसमे मा,बाप,भाई,बहन,चाचा,चाची,दादा,दादी,सभी को एक कमाई से ले कर खुशी से चल पाता था ! आज वो सयुक्त परिबार............से.............ब्यक्तिगत.........और अब शायद एकल ब्यक्ति परिबार की ब्यबस्था को ले कर चलने लगेगा जैसे पश्चिमी देश मे चल रहा है ! जो आदमी पन्दह रु. महिने कमाता था आज एक लाख रु. कमा रहा है लेकिन भारतीय परिबेश के अनुरुप क्या बो सुखी है ? नही शायद नही !उसकी मान्यताए उसका सुख भारतीय परम्पराओ मे है और ब्यबस्था उसे पस्चिमी परम्पराओ की ओर धकेले जा रही है ! समाज मे हो रहे इस बदलाब का सीधा असर दिख रहा है......बाकी फ़िर कभी...........